लघुकथा:- संकल्प
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ठाकुर गजेंद्र
के घर आज खूब चहल पहल है,उनकी नन्ही परी की आज शादी है ।कल तक जो लड़की छुटकी थी आज वही खूबसूरत नैन नक्श,
कटीली आँखों , उभरते हुए वक्ष मानों कली फूल मे परिवर्तित होने वाली हो,
सुन्दर नवयुवती का रूप धारण कर चुकी है। किसी भी लड़की के
लिए मायके छोड़ कर ससुराल जाना दुखद हो सकता है परन्तु वहीं अपने प्रिय से मिलन की
अभिलाषा का सुखद अनुभव उसके अंदर तड़प भी पैदा करता है।
मुकुल जिसका सुषमा के घर शुरू से ही आना जाना था । अपने दिल
की बात वह आज तक जुबां पर लाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। वह सुषमा से बेहद प्यार
करता था। और उसका अपना चलता हुआ बिज़नेस भी है उससे अच्छी खासी आमदनी होती है । वह
ठाकुर के स्वभाव से भी परिचित था । जाति-पंथ , समाज रसूख यह सब ठाकुर साहब के लिए काफी मायने रखते हैं ।
ठाकुर साहब ने अपनी इकलौती लड़की की शादी एक खाते पीते घर मे तय की है । लड़का
आइ०ए०एस है और उसकी अभी नई नई पोस्टिंग हुई है। बारात घर पर पहुँचती है और मुकुल
अपने दोस्तों के साथ बारातियों के स्वागत सत्कार में लग जाता है । जयमाला का
कार्यक्रम समाप्त हो चुका है और फेरे शुरू होने वाले हैं । उधर दोनों समधियों के
बीच ठीक-ठाक लेन देन भी हो चुका है। एक लड़की की सरे आम बोली लगाई जा चुकी थी,
सुषमा आज नीलाम हो चुकी है । तभी लड़के के माँ बाप दौड़ते हुए
फेरे के मंडप में पहुँचे -ये शादी नहीं हो सकती चलो यहाँ से लड़के के पिता ने अपने
आ०ई०एस० बेटे को मंडप छोड़ने का हुक्म दिया , जब ठाकुर गजेंद्र ने लड़के के पिता से इसका कारण जानना चाहा
कि लेन-देन तो भाई साहब सब आप की
इच्छानुसार हुआ तो एक बाप की पगड़ी सरे आम क्यों उछाल रहे हैं । तभी लड़के की माँ
पीछे से बोली आप हमसे कारण पूछ रहें है आपकी लड़की मनहूस है पैदा होते ही यह अपनी
माँ को खा गयी और आज फेरे पड़े नहीं की मेरी बिटिया जो शादी मे आ रही थी उसका अभी
-अभी एक्सीडेंट हो गया है पता नहीं किस हाल मे होगी हमारी बेटी । तो इसमें सुषमा का
क्या दोष ठाकुर साहब ने कहा । पर लड़के वाले टस से मस नहीं हुए यह लड़की ही मनहूस है
कह कर बारात वापस ले गये। खैर किस्मत का लिखा कौन बदल सकता है । कुछ दिनों बाद
ठाकुर साहब को पता चलता है कि उसी लड़के की शादी किस दूसरे पैसे वाले घराने में कर
दी गई है और किसी का एक्सीडेंट वगैरह नहीं हुआ था । सब मनगढंत था । ठाकुर इतने बड़ा
झूठ बर्दाश्त नहीं कर पाये और उसी रात उनकी हार्ट अटैक से मौत हो गयी । कभी हंसी
खुशी से भरा घर श्मशान में तब्दील हो चुका था । आज साल भर बीत चुका है ठाकुर साहब
की मौत को और आज तक इसी उहापोह की स्थिति में फंसा पडा मुकुल सुषमा से अपने दिल की
बात कहने का दृण संकल्प लेकर के घर से
निकल पड़ता है। आज वही मनहूस सुषमा , मुकुल के जीवन में, ख़ुशी की फुहार बन कर , बरस रही है ।
(पंकज
जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
१७/०१/२०१५
सकारात्मक अंत की कहानी बहुत अच्छी
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