सत्यम अपने माता-पिता की
इकलौती संतान है । जिसको उन्होंने काफी मन्नत के बाद ईश्वर की कृपा के फलस्वरूप
प्राप्त किया था । वह उनकी आँखों का नूर और तारा था । कहते हैं कि पूत के पैर पालने
में दिखाई दे जाते हैं । बचपन से ही वह कुशाग्र बुद्धि होने के साथ साथ धैर्यवान भी
था । पिता उसके ऑटो रिक्शा चलाते थे और माँ लोंगो के घरों के बर्तन मांजती और रात
मे कपडे सीती थी । बड़े कष्टों को उठा कर उन्होंने अपने बेटे को अच्छे स्कूल भेजा और अच्छी से अच्छी तालीम देने की कोशिश की यह सोचते हुए कि अगर हम
दोनों पढ़ लिख नहीं पाये तो क्या हुआ अपने बेटे को हम अपने जैसा मज़दूर नहीं बल्कि
उसे पढ़ा लिखा जागरूक नागरिक व अधिकारी बनायेगें । बचपन से ही सत्यम को सेना मे
भर्ती होने की प्रबल इच्छा थी और उसे यह प्रेंरणा उसे छब्बीस जनवरी की गणतंत्र
दिवस को हर साल आयोजित होने वाली परेड को , टीवी पर ,
जो वह पड़ोसी के घर की खिड़की से चुपचाप छुप कर झाँक कर देखा करता था
। अब सत्यम सोलह वर्ष की युवावस्था मे प्रवेश कर चुका था ,अब
वह भी अपने माता पिता के कार्यों मे हाथ बटाने लगा था।इस वर्ष सत्यम ने अपनी इण्टर
की परीक्षा अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण की थी और इसके साथ ही उसने नेशनल डिफेंस
अकादमी की प्रवेश परीक्षा भी उत्तीर्ण कर ली।और अब उसे ट्रेनिंग के लिए इंडियन
मिलिट्री अकादमी (आई०एम०ए०) जाना था ।उसकी माँ ने उसके जाने से पहले घर पर रामायण
रखवाई थी । बड़ी खुश थी वह पूरे मोहल्ले को उसने स्वयं अपने हाथो से लड्डू बाँटे थे ।
कुछ वर्षों के पश्चात छब्बीस वर्षीय सत्यम अब सेना मे मेजर बन चुका था । कई बार
उसने अपने माँ और पिता को अपने साथ चल कर रहने को कहा पर हर बार वह अगली बार साथ
चलने की बात कह कर टाल देते थे । सेना ने सत्यम को स्पेशल कमांडो ट्रेनिंग के लिए
चुना था जो किसी के लिए गर्व की बात हो सकती है ।ट्रेनिंग पूरी होने के बाद उसे
नेशनल सिक्युरिटी गार्ड (एन ०एस०जी०) मे पोस्टिंग मिल जाती है।एक दिन 26 नवम्बर 2008 को उसे टीवी पर मुम्बई मे आंतक वादी
हमले की खबर देखने को मिलती है । यह एक कायरता पूर्ण कृत्य था जिसमे सैकड़ो
बेहग़ुनाहों की जाने अब तक जा चुकी थी।वह न्यूज देख ही रहा था कि उसे अचानक एक
टेलीफोन आया जिसमे उसे ताज होटल मे बंधक बने लोगों को अपनी टीम गठित कर
आतंकवादियों के चंगुल से छुड़वाना था। तीन दिन के करीब चली मुठभेड़ मे होटल तो
आतंकवादियों के चंगुल से तो मुक्त हो गया परन्तु मेजर सत्यम इस आपरेशन में शहीद हो
जाता है,सेना ने एक और होनहार अधिकारी को खो दिया था। यह खबर
उसके माता-पिता के लिए किसी कुठाराघात से कम नहीं था। कुछ ही मिनटों मे न्यूज चैनल
वालों के साथ प्रदेश के बड़े नेतागण अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ सांत्वना देने उनके
घर चले आये और किसी ने उसके घरवालों को पेट्रोल पम्प तो किसी ने गैस एजेंसी तो
किसी ने रोड व पार्क का नामकरण करने की सजीव प्रसारण मे घोषणा तक कर डाली I भारत
सरकार ने उसे मरणोपरांत परमवीर चक्र से नवाजा ।आज इस बात को लगभग सात वर्ष होने को
आयें हैं उसकी बरसी का दिन है।शहर मे उसके नाम से बने चौराहे पर नेता जी ने उसकी
मूर्ति पर माल्यार्पण कर देश के नवयुवकों से उसके जीवन से प्रेरणा लेने की अपील की
और उसकी ही भाँति देशप्रेम और देश के लिये न्यौछावरकरने की बात अपने सुंदर से भाषण मे कह कर अपने लाव-लश्कर सहित महंगी
लग्जरी गाडी मे बैठ कर चलते बने।दूर से अपने ऑटो मे बैठा उस शहीद का पिता अपनी नम
आँखो से यह सब तमाशा देख व सुन रहा था कि इसी नेता से कितनी बार वह पेट्रोल पम्प व
गैस एजेंसी के लिए मिन्नते कर थक हार और अपने जूते व चप्पल घिस चुका था । पर सब
व्यर्थ आज तक वह दिन नहीं आया था । आज वह अपने आप को और उस दिन को कोस रहा था जब
उसने सत्यम को पहली बार पढ़ने के लिये स्कूल भेजा था । ना सत्यम ज्यादा पढ़ता ना ही
सत्यम सेना मे भर्ती होता ना वह देश के लिए शहीद होता । अगर आज वह ज़िंदा होता तो
अपने माता-पिता का बुढापे का सहारा तो बनता। मेजर सत्यम की माँ आज भी दूसरों के घर
काम करती है और पिता ऑटो चला कर गुज़ारा कर रहें है । एक आतंकवादी के मजहबी उन्माद
ने ना सिर्फ उसके बेटे को छीना और ना जाने कितनी ही माँओं की गोद इस उन्माद के
सैलाब मे उजड़ गयी ।
(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ। उ०प्र०
१०/०१/२०१५
No comments:
Post a Comment