लघुकथा :– मासूमियत
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उमा जैसी ही अपने पति के साथ कार से उतरी ही थी , रेस्त्रां के अंदर जाने के
लिये , तभी एक भिखारिन ने पीछे से आवाज लगाई बाबू जी एक
रुपया दे दो , भगवान के नाम पर एक रुपया दे दो , मेमसाब आपकी जोड़ी सलामत रहे आपके बाल बच्चे सुखी रहें खूब फलें फूले ।
फिर उसने गोदी में अपने बच्चे को उठाया और बोली मेमसाब एक बार रहम करो "देखो
इसने कल से इसने कुछ नहीं खाया है । " उमा की शादी के आठ साल होने को आये थे
आज तक उसकी गोद सूनी है ना जाने कितने मंदिर - दरगाहों पर दोनों पति पत्नी ने जाकर
मत्थे टेके होंगें ।पर सब व्यर्थ वह आज तक माँ नहीं बन पाई थी । रेस्त्रां के अंदर
जाते समय भिखारिन के बच्चे ने नादानी में पीछे से उमा का पल्लू पकड़ लिया उमा चौंकी
जैसे ही उसने पलट के देखा तो उसके अंदर का ममत्व हिलोरें लेने लगा । उसने तुरंत
अपना पर्स खोला और चॉकलेट के कुछ पैकेट बच्चे के हाथ में थमा दिए और चुपचाप अपने
पल्लू से चश्मे के अंदर झरते हुए आँखों के कोरों से बहते हुए आंसूओं को पोछ कर
रेस्त्रां के अंदर जाने लगी भूख से तड़पते हुए बच्चे की आँखें ख़ुशी से चमक उठी और
बड़ी मॉसूमियत से बोला अम्मा देखो यह क्या है ?
(पंकज
जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
१४
/०१/२०१५
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