Saturday 29 August 2020

दुआ का असर


कोई उनसे अगर उनका मजहब पूछे तो वह मुसलमान थे, वह भी पांचो वक्ति , मजाल है कि कभी नमाज ना अदा की हो और पेशे से वह एक सच्चे इंसान यानि डॉक्टर। "डॉक्टर साहब मेरी बीमारी कब ठीक होगी ? हीरा ने थके मांदे स्वर मे सीधा प्रश्न कियावह इसका उत्तर देते कि तभी कम्पाउंडर तपाक से बोल पड़ा "मरने पर ही बीमारी आपका पीछा छोड़ेगी" उसकी नादानी भरी बात  सुन कर उधर बैठे मरीजों के चेहरों पर हँसी बिखर गई पर डॉक्टर साहब  गम्भीर मुद्रा मे बैठे कुछ सोच रहे थे कई बार अपनी मेज की दराज खोलते पुस्तक निकालते कुछ पन्ने पलटते उसको रखते दूसरी किताब निकालते फिर उसके पन्ने पलटते  करीब घण्टे भर तक क्रम ऐसी ही चलता रहा। मालूम पड़ता था कि मर्ज गम्भीर है हीरा की दयनीयता  कुछ ऐसे ही भाव बतला रहा थी। 

डॉक्टर साहब ने पुस्तक अपनी छाती पर रख कर आँखे बंद की, मानो वे किताब को छाती पर रख के अपने रब से दुआ मांग रहें हो, थोड़ी देर उन्होंने कुछ सोचा कलम उठाई फिर पर्चे पर कुछ लिखा "चलो दवा बनाओ "

खिड़की से छन कर आती रोशनी उसे आशा की किरण प्रतीत हो रही थी। 


पंकज जोशी

सर्वाधिकार सुरक्षित। 

लखनऊ। उ०प्र०

२९/०८/२०२०