" क्यूँ री तेरे खान पान रहन सहन में क्या कमी रखी जो तू हमें ही आँखे दिखा रही है । "
" तूने कोई कसर नहीं छोड़ी मौसी पर मैं आँखें बंद कर उस लड़के को हाँ भी नहीं कह सकती । ऐसे व्यक्ति से जिसका अपना कोई अस्तित्व ना हो मैं उसके साथ ज़िन्दगी कैसे गुज़ार दूँ ? तुम्ही बताओ ?
" ऐसा ना हो कि तुझे कल पछताना पड़े । " " पछताना कैसा मौसी क्या समाज के लिये स्वयं की बलि चढ़ा दूँ ? बगैर स्वत्व का भान किये ? "
( पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
१४/ 10 / २०१५
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