लाल किला -
--------------------------
जन्नत में भी शाहजहाँ को सुकून ना
था ,
मुमताज उसी की कब्र के बगल में लेटी हुई थी ,
फिर भी बादशाह की आँखों से नींद कोंसो दूर थी ।
उसे चैन की नींद सोये कई शताब्दियां बीत चुकी थीं पर उसे नींद नहीं आ रही थी ।
आखिर एक रात उसकी प्यारी बेगम ने उसका हाथ अपने हाथो में लेते हुए पूछ ही लिया
– “ जिल्ले इलाही ! हमको धरती छोड़े कई साल हो
गए पर मैं सालों से देख रही हूँ कि अरसे गुजरे हुये आपको चैन की नींद सोये देखे
हुए ! ”
आखिर क्या कारण है हमारी औलाद औरंगजेब जिसने मेरे गुजरने के बाद आपको कैद कर
हमारे बेटों को मौत के घाट उतार दिया ?
" नहीं बेगम यह बात
नहीं है " मैंने हिन्दुस्तान में तीन लाल किले बनवाये थे पर उनमे से एक
दिल्ली का ही ही विश्व प्रसिद्व क्यों है ? हमारी प्यार की निशानी ताजमहल के सामने किला या लाहौर का
क्यों नहीं ?
हूँ " आलमपनाह बस इतनी सी बात " राजनीति प्यार में जो हावी हो गई ।
उठ कर मुमताज गुस्से में अपने पैर पटकते हुए अपनी कब्र में सोने चली गई ।
(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित।
लखनऊ । उ.प्र
05/06/2015
No comments:
Post a Comment