Wednesday 16 March 2016

दर्द

हस्पताल में अपने बेटे के पास बैठा ही था तभी अचानक चौधरी का फोन खनखनाया । मंत्री का फोन था सो उसे उठाना पड़ा । " जी मंत्री जी , क्यों बे ! चौधरी आज का अखबार देखा क्या ? नहीं साहब क्यों हुआ ? चौधरी बोला उधर से मंत्री ने उत्तर दिया क्या सारा माल अकेले हजम कर जायेगा कैसा घटिया मसाला लगाया कि पुल उद्घाटन से पहले ही गिर गया दो मजदूर परिवार पिस गये । साहब कट तो आपको भी गया था  " कहते हुये उसने अपना सिर
पकड़ लिया ।

" पापा मुझे क्या हुआ , मुझे कमजोरी हो रही है ? " बेटा तुझे कुछ नहीं हुआ बस एक दो दिन की बात है फिर डिस्चार्ज कराके घर चलेंगे। रोहित के पिता ने कहा ।
तभी उसकी तबियत अचानक बिगड़ गई " पापा मुझे छोड़ कर मत जाना मेरी आँखों  के सामने अँधेरा छा रहा है । तू रुक अभी मैं डॉक्टर को बुला कर लाता हूँ । "

" डॉक्टर साहब मेरे बच्चे को बचा लीजिये जितना रुपया चाहिए मैं आपकी झोली भर दूंगा यह लीजिये यह सोने का हार  दो तोले का है । "

" कैसी बातें कर रहे हैं चौधरी साहब उसको लुकिमिया है । आखरी स्टेज है बचना मुश्किल है ।

" पैसे से आप किसी की जिंदगी नहीं खरीद सकते डॉक्टर ने उसे समझाते हुए कहा ।"

चेहरे पर निराशा , हताशा के भाव लिये वह लड़खड़ाते क़दमों के साथ रोहित के बेड के पास पहुंचा । बुदबुदाते हुए हे ! " भगवान मेरे पापों का फल मेरे बच्चे को मत दो । "

पापा पापा कहते हुये रोहित ने उसकी गोद में आखरी सांस ली ।

श्मशान घाट पर चौधरी को अपनी दौलत धू धू करते हुये जलती नजर आ रही थी ।

( पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
16/03/2016
मौलिक व अप्रकाशित
लखनऊ । उ०प्र०

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