Sunday 14 May 2017

विरह

'अरे अपरा! सड़क के दूसरी ओर उसे कोई दूर से हाथ हिलाता हुआ आवाज दे रहा था। तेज धूप में उसने चेहरा पहचानने की नाकाम कोशिश की, तभी विवेक उसके पास भागता हुआ आया, पहचाना मुझे? उसने पूछा, 

'नहीं मैंने नही पहचाना आपको, कौन है आप और इस तरह आपको बीच सड़क में मुझसे क्या काम है ?'

'अरे आपने तो मुझे सचमुच नहीं पहचाना? फिर बताने से क्या फायदा , अगर आप अपरा जो स्कूल टीचर है तब तो मैं सही हूँ, ओके!कोई नहीं मैं आपको डिस्टर्ब करने के लिये माफ़ी मांगता हूँ बॉय..... वैसे मैं अनुज का दोस्त हूँ।'

'सुनिये!रुक जाइये एक मिनट के लिये मैं माफ़ी चाहती हूँ दरअसल काम के टेंशन में मुझे कुछ याद नहीं आ रहा , वैसे आप उनको कैसे जानते हैं?'

'अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो क्या हम किसी रेस्त्रां में बैठ कर बात कर सकते हैं?, श्योर यहीं पास ही में है वैसे भी धूप तेज है उसने प्रत्युत्तर दिया।'

देखिये अनुज मेरी ही यूनिट में मेरा जूनियर था और  जहाँ तक मैं सही हूँ तो मैंने उसके साथ जो आपकी फोटो देखी है शायद आप उसकी दोस्त से बढ़कर थीं? पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था.....एक काम्बिंग में शहीद हो गया।

गहन चुप्पी को तोड़ती आवाज उसके कानों को सुनाई पड़ी 'सर काफी देर हो चुकी है,अब हमें चलना चाहिये, माँ -बाबा इंतेजार कर रहे होंगें।'

आइये मैं आपको अपनी गाड़ी से घर तक छोड़ देता हूँ , उसने आगे बढ़ कर अपनी कार का दरवाजा खोला और उसमें बैठ कर दोनों घर की ओर चल पड़े ।

'आगे से राइट और फिर लेफ्ट लेकर सीधे राइट और वह जो लाल रंग का घर दिख रहा है ना आपको वही मेरा घर है।'
वह उसे रास्ता बताती हुई जा रही थी, कार ठीक जैसी ही घर के सामने रुकी उसने कार का दरवाजा खोलकर बाहर उतर गई। 

गेट के बाहर नेम प्लेट पर कैप्टन अनुज शर्मा लिखा देख कर वह चौंका, उसने उसे ऊपर से नीचे तक देखा, ना चेहरे पर कोई मेकअप, ना कोई सिंदूर, यह क्या एक विधवा का जीवन? उसने अपने आप से कहा।

'रुकिये अगर बुरा ना माने तो एक बात पूछूँ आपकी तो उससे शादी भी नहीं हुई थी फिर आप ....यह ?, आप नहीं समझेंगें सर .... अच्छा मैं चलती हूँ , नमस्ते।'

बिल्कुल शांत थी वह मानो कुछ हुआ ही ना हो, तूफ़ान आया और चला गया सामने कर्तव्यों की भेंट चढ़ती हुई एक बेटी शेष रह गई थी ।

(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित।
लखनऊ । उ०प्र०
१३/०५/२०१७

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