Friday 11 March 2016

सेंट्रल पार्क

पत्नी के देहांत के पश्चात रवि अपने बेटे के पास अमरीका आकर बस गया था ।अपने पालतू कुत्ते शेडो के साथ घण्टो सेंट्रल पार्क में हाथ में वाइन की बोतल और कैमल सिगरेट पैक से श्वेत दण्डिका निकाल कर सुलगाना यह उसकी दिन चर्या का एक हिस्सा बन चुका था । ऐसे ही उसकी नजर पड़ोस की बैंच पर पड़ी एक प्रौढा युवती पर पड़ी । बोरियत से बचने के लिये उसने उससे दोस्ती गांठने की ठानी ।

" हैलो आई एम् रवि...." जैसे ही उसके यह शब्द जुबां से बाहर निकल पाते तभी वह चिल्लाया " अरे ऋचा तुम ?  पहचाना मुझे मैं रवि उसने अपना परिचय देते हुए कहा "

 " हाँ पहचान लिया कैसे भूल सकती हूँ तुम्हे । " ऋचा बोली

" सिगरेट बुझाते हुए उसने पूछा तुम यहाँ कैसे और कब आईं ? " 
" अरे मेरी लड़की रहती है यहां तो साथ कुछ वक़्त गुजारने चली आती हूँ भारत से " और तुम यहाँ कैसे प्रश्न के साथ ही ऋचा ने कुछ खिसकते हुए बैंच पर उसे बैठने को इशारे से कहा । 
" खांसते हुए उसने एक आह भरी और बोला भला चंगा तुम्हारे सामने हूँ । बेटा मेरा यही बस गया है तो वहां सब कुछ बेच कर .... कहते हुए फिर से खांसने लगा । 

"क्यों पीते हो इतनी जब तुम्हें सूट नहीं करती है । ठण्डी हवा चल रही है , मफलर क्यों नहीं डालते हो गले में " ऋचा ने ठिठोली करते हुए कहा ।

पल भर में उसने ऋचा का हाथ अपने हाथों में लेते हुए कहा । " तुम आज भी मेरा कितना ख्याल रखती हो काश तुम मायके में रहने की जिद ना करती तो आज हम दोनो एक साथ रहते होते । "

"आह काश तुमने मेरे पापा की बात मान ली होती , मैं उनकी इकलौती बेटी थी शानो शौकत से भरी हमारी जवानी गुजरती और बुढापा भी ।" ऋचा ने तंज कसते हुए कहा ।

" तुम आज तक नहीं बदली वही अंदाज जिद्दी , वही अल्लहड़पन " रवि ने हंसते हुये कहा ।

" तुम भी कहाँ बदले हो आज भी मेरा कहना नहीं मानते हो । शाम होने को आई है पर मॉफलर नहीं ओढ़ा तो नहीं ओढ़ा " नहले पे दहला मारते हुए बोली ।

" हाँ चलो चलते हैं शाम होने को आई है , सुनो कल तुम जरा जल्दी आ जाना , जब तक यहाँ हो , तुम्हारा साथ मुझे अच्छा लगता है " रवि ने उसकी ओर मुखातिब होते हुए अपने जवानी के दिनों को याद करते हुये कहा जब दोनों एक साथ पार्क की बैंच पर हाथों में हाथ डाले घण्टो बैठा करते थे ।

" रवि एक बात कहूँ " हाँ हाँ कहो क्या कहना चाहती हो ? बस यही कि क्या हम फिर से एक नहीं हो सकते हैं मेरा मतलब शादी से है । " ऋचा ने मानो जल्दी से अपनी बात कहना चाहा हो ।

" तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है उसने उसके हाथों को प्यार से सहलाते हुए कहा , बुढापे में सठिया गई हो , अब हमारे पोते पोतियों की शादी होने वाली हैं  " 
उसके यह कहते ही हवा में अजीब सा सन्नाटा पसर गया ,
 दोनों की आँखों से बहते हुए आंसुओ के कारण धुंध सी छा गई । दोनों ने अपने अपने चश्मों को पोछते हुए एक स्वर में बोले कल फिर मिलेंगे कहते हुए विपरीत दिशाओं में अपने अपने गंतव्यों की ओर चल दिये ।

( पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र
11/03/2016

3 comments:

  1. वाह्ह्ह्ह सर लाजवाब लघु कथा। आनंद आ गया।

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    1. प्रोत्सान के लिये धन्यवाद आ . सुभाष जी ।

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    2. प्रोत्सान के लिये धन्यवाद आ . सुभाष जी ।

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