" तुम अब भी मेरा पीछा क्यों नहीं छोड़ती ? मेरी ज़िन्दगी से जब तुम चली ही गई हो तो क्यों बार - बार मेरे सामने आकर मुझे तड़पाती हो , क्यों बीते दिनों की याद दिलाती हो ? ओह ! यह आँखे , इनकी रोशनी चली क्यों नहीं जाती ? "
प्रकाश ने शराब के गिलास को अपने होंठो से लगाने के लिये उठाया ही था कि तभी उसे जाह्नवी की आवाज अपने कानों में पड़ती हुई सुनाई दी । " कैसे छोड़ सकती हूँ तुम्हें मैं आज भी तुम्हें उतना ही प्यार करती हूँ जितना पहले करती थी । " झूठ झूठ सब धोखा है अगर तुम मुझसे प्रेम करती तो इस तरह तुम मुझे यूँ अकेला छोड़ कर ना जाती नशे के घूँट को अंदर गटकते हुए वह बुदबुदाया । एक बार जरा अपनी हालत तो देखो तुम यह बड़ी हुई दाढ़ी , लम्बे बिखरे हुए बाल , शरीर से आती हुई सड़ांध तुम तो कभी ऐसे ना थे । बन्द करो अपना प्रवचन देना, चली जाओ यहाँ से मुझे तुम्हारी शक्ल से नफरत हो गई है कहते हुए उसने गिलास उठाया और उसकी ओर फेंक दिया , पल भर के लिये उसका चेहरा उसकी नजरों से ओझल हो गया पर अगले ही पल जमीन पर बिखरे पड़े कांच के टुकड़ो पर प्रेयसी का चन्द्रमुखी मुखड़ा हर ओर उसकी उपस्थिति को दर्ज करा रहा था । यह मेरे किस गुनाह की सजा तुम मुझे दे रही हो कहते हुए लड़खड़ाते हुए क़दमों से बोतल को हाथ में लिये उसने मयखाने से बाहर निकलने की एक नाकाम कोशिश की पर वह अपने को सम्भाल नहीं पाया और जमीन पर गिर गया , कांच के बिखरे टुकड़ो पर अंकित अपनी प्रेमिका के चेहरों को वह चूमने की नाकाम कोशिश करने लगा , काश ! वह मनहूस दिन हमारी ज़िन्दगी में ना आता और हम सदा एक दूसरों की बाहों में रहते , आज मुझे ऐसा क्यों लग रहा है कि तुम्हारी दी हुई आँखें मेरे लिये अभिशाप बन गई है ।
मैंने तुम्हें कहाँ छोड़ा प्रकाश , मैं आज भी तुम्हारे पास हूँ एक बार इस नरक के दलदल से बाहर निकल कर तो देखो , मैं तुम्हारी थी और तुम्हारी ही रहूँगी , तुम्हें मेरी कसम अगर फिर से इसको हाथ लगाया तो मैं सदा के लिये तुम्हारा साथ छोड़ कर चली जाओगी । बेसुध प्रकाश के मुँह से एक कराह सी उठी " मत जाओ इस बार मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता शराब क्या मैं तुम्हारे लिये यह दुनिया भी छोड़ सकता हूँ । " जमीन पर बिखरी शराब की बोतल के कांच के टुकड़ों पर उसका मुस्कराता चेहरा वह स्पष्ट देख सकता था ।
( पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र
१७/१२/२०१५
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