मुरारी बाबू के शव को प्रणाम कर उनके बचपन के मित्र सोमेश उनकी धर्मपत्नी को सांत्वना देने पहुंचे " अरे भाभी जी यह सब अचानक कैसे हो गया? क्या कहें भाईसाहब कल रात ये खाना खाने के बाद सोने जा रहे थे कि अचानक से इनके सीने में दर्द उठा ----और बस । यह सचमुच आप लोंगों के साथ बुरा हुआ परमतम आप लोगों को इस असमय दुःख को सहने की ––– " सोमेश जब तक अपने शब्दों को विराम देते तब तक पास में बैठा मुरारी बाबू का सुपुत्र रवि यह सब सुन कर अपनी भावनाओं को काबू में ना रख पाया और जोर से फूट फूट कर रोने लगा " यह सब मेरे कारण हुआ है माँ ! ना मैं कल रात नशे की हालत में घर आता और ना ही बाबू जी इस तरह बिना इलाज के तड़पते हुए प्राण छोड़ते " सुमित्रा उसके पास आकर उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोली " यह सब तो विधि का विधान है , इसमें तेरा क्या दोष । हाँ , अगर तुम अपने अंदर की पश्चाताप की आग में जल रहे हो तो बेटा अपने पिता के सामने प्रण लेना होगा कि आज कि आज के बाद तुम ना केवल इस कुरीति का त्याग करोगे बल्कि औरों को भी नशा त्यागने के लिए भी को भी प्रेरित करोगे । यही तुम्हारी उनके प्रति सच्ची श्रद्धाजंलि होगी ।
पंकज जोशी (सर्वाधिकार सुरक्षित )
लखनऊ । उ०प्र०
30/11/2015
No comments:
Post a Comment