तहजीब
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लखनऊ । उ.प्र
21/07/2015
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आज मेरी कलम , दवात और स्याही मेरा साथ छोड़ कर जाना चाहती है । वे सभी अपने को एक दूसरे से काबिल समझ रही हैं " पर क्या तुम लोगों को इस बात का आभास है कि बिना मेरी उँगलियों के सहारे तुम अस्तित्व हीन हो ! "
" किस अस्तित्व की तुम बात करते हो कागज बोला अगर मैं ना हूँ तो तुम अपनी भावनाओ को उकेरोगे किसमे" फिर पीछे से स्याही की आवाज आई " अगर में रोशनाई ना बिखेरूं तो लोग कागज और तुम क्या ख़ाक पढ़ेंगे "
इतनी देर से चुप कलम जो अब तक चुप्पी साधी हुई थी उसकी आँखों से अंगारे मानो बरस रहे थे ।
अगर मैं ना होता तो तुम्हारी ,रोशनाई ,कागज और यह लेखक सब बेकार थे ।
सभी अपने अपने क्षेत्र के माने हुए पुरोधा थे जो किसी भी तरीके से एक दूसरे के सामने झुकने को तैयार नहीं थे।
तभी तेज बारिश लिये अंधड़ आया और लेखक के मनोभावों को जो उसने रोशनाई और कलम के साथ कागज पर उकेरे थे दूर उड़ाता ले गया ।
तहजीब बारिश के पानी घुल कर प्रकृति में रच बस चुकी थी ।
( पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ.प्र
21/07/2015
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