दोहन
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लकड़ हारे के कुल्हाड़े से बरबस चोट खाता हुआ एक पेड़ अपने जीवन के अंतिम श्वाशों को गिन रहा है ।
पेड़ के टूट कर गिरने पर चरमराहट की आवाज मानो चीत्कार कर रही है। " त्राहिमाम माँ , त्राहिमाम माँ " धरती अपने एक संतान के प्रति , दूसरे संतान का असंवेदनशीलता को बर्दास्त ना कर पा रही थी।
इधर इंसानो का वनसंपदा के प्रति बढ़ते हुए लालच ने धीरे धीरे सूखे व आकाल का रूप ले लिया। अब तो वन्य जीव जंतु भी त्राहिमाम् करने पर मजबूर हो गए।
प्रकृति माँ धरती की आँखो से निकले आँसूओ के सैलाब अब सुनामी का रूप लेने लगे ।
( पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित।
लखनऊ ।उ.प्र.
02/05/2015
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लकड़ हारे के कुल्हाड़े से बरबस चोट खाता हुआ एक पेड़ अपने जीवन के अंतिम श्वाशों को गिन रहा है ।
पेड़ के टूट कर गिरने पर चरमराहट की आवाज मानो चीत्कार कर रही है। " त्राहिमाम माँ , त्राहिमाम माँ " धरती अपने एक संतान के प्रति , दूसरे संतान का असंवेदनशीलता को बर्दास्त ना कर पा रही थी।
इधर इंसानो का वनसंपदा के प्रति बढ़ते हुए लालच ने धीरे धीरे सूखे व आकाल का रूप ले लिया। अब तो वन्य जीव जंतु भी त्राहिमाम् करने पर मजबूर हो गए।
प्रकृति माँ धरती की आँखो से निकले आँसूओ के सैलाब अब सुनामी का रूप लेने लगे ।
( पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित।
लखनऊ ।उ.प्र.
02/05/2015
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