Monday 6 April 2015

सिक्के के दो पहलू ( शराबी )
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जो लोग उसे पीठ पीछे शराबी , नशेडी ना जाने कितने ही नामों से पुकारा करते थे आज वही शांत गर्दन झुकाए खड़े हैं ।
सुमेश का कसूर सिर्फ इतना ही तो है ना कि वह अपना दिल संध्या के प्रति हार बैठा था । और वह बेवफा जिसको चकाचौंध भरी ज़िन्दगी ने अपने आगोश में ले लिया था उसको मझधार में छोड़ किसी और के साथ चल दी प्यार की नई पेंगे बढाने को ।
आज मोहल्ले में रघु के घर के अंदर आग लगी हुई हैं । सुमेश ने उसके लड़के को आज शराब खाने में बैठा पाया तो बालों से घसीटते हुए लात मार कर उसे उसके घर का दरवाजा दिखाया दिया ।
सन्नाटे को चीरती उसी की ही आवाज इस समय लोगों के कानो में गुन्जायमान है,
"गर आज के बाद तेरे लड़के ने फिर कभी ठेके का रुख भी किया तो मैं उसकी टाँगे तोड़ डालूँगा" । --हाथों में मदिरा से भरी शीशी मानो अभी भी उसका इमतिहान लेने को आतुर इधर उधर छलक रही है ।
सडक पर बिखरे कांच के टुकड़े मानो सुमेश की जीत का जश्न मनाते हुए मोहल्ले वालों को मुंह चिड़ा रही हो ।
और सुमेश की आँखों से गिरते आंसू कहना चाह रहे हों काश ! कोई उसे भी रोक लेता वक़्त रहते तो उसकी ज़िदगी भी सवंर जाती ।
(पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित 
लखनऊ । उ. प्र

07/04/2015

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