सजा
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पूरी जवानी उसने नशे और जुएँ की लत और बाप की नीली बत्ती के रौब में होम
कर दी ।
अभी माँ व बाप को मरे अभी साल भर ही नहीं हुआ, और तुम्हारा नशे में यूँ दिन रात झूमना , आखिर तुम कब इसे छोड़ोगे ?
देखना रमन ! यह ड्रग्स कभी तुम्हारी जान ले के छोड़ेगी
आज घर की एक एक चीज नीलाम हो चुकी है , यहाँ तक की नाते-रिश्तेदार , नौकर चाकर सब साथ छोड़ कर चले गये ।
मैं तुमसे तंग आ चुकी हूँ अब तुम्हारे साथ और नहीं
निभा सकती ।
"हाँ हाँ यहाँ भी कौन रोज तुम्हारा मुंह देखना चाहता है " रमन ने जोर से चिल्लाते हुए कहा ।
" मैं भी तुम्हारी इन रोज की बकझक से तंग आगया हूँ अगर साथ नहीं रह सकती तो जहाँ जाना चाहो जिसके साथ जाना चाहो जा सकतीं हो मेरी तरफ से तुम आजाद हो संध्या " ।
" बस बहुत हुआ अब चुप भी चुप करो रमन " संध्या ने गुस्से से काँपते हुए होंठो से कहा ।
आखिर एक रात वह अपनी दूधमुही बच्ची को साथ लेकर रमन का घर सदा के लिए छोड़ कर चली गई ।
आज वह हस्पताल के जनरल वार्ड की छतों को ताकते हुए अपने जीवन की अंतिम साँसों को
गिन रहा है ,एक जिंदा लाश की
तरह ।
(पंकज जोशी ) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ प्र
27/04/2015
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