Sunday 8 February 2015

लघुकथा:- बैजू बावरा 
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नवीन को बचपन से ही संगीत के प्रति रुझान था ।और उसने इंटर पास करने के बाद अपनी संगीत साधना को पूरा करने के लिये संगीत विश्व विद्यालय में दाखिला ले लिया और शास्त्रीय संगीत का तन्मयता से रियाज करने लगा ।

कुछ दिनों में हरीश और अमिता जो उसके सहपाठी थे तीनों अच्छे दोस्त बन गये ।
दोस्ती कब दुश्मनी में बदल जाये यह कुछ कहा नहीं जा सकता। गले में बेहतरीन स्वर और ऊपर से अमिता की नवीन के साथ नजदीकियां हरीश को रास नहीं आ रहीं थी ।
रतन शाह जो हरीश के पिता व शहर की एक प्रतिष्ठित ड्रग कम्पनी के मालिक हैं उनकी कंपनी में नवीन के पिता फाइनेंस मैनजर है । हरीश को यह बात पता थी ।
ईर्ष्या संसार की सबसे खतरनाक वस्तु है । हरीश ने कुछ ऐसी चाल चली जिसके कारण उन्हें गबन के आरोप में जेल हो गई और कुछ ही महीनों बाद उन्होंने जिल्लत भरी जिंदगी से तंग आ कर जेल मे आत्महत्या कर ली ।
जब नवीन को यह बात पता चली तो उसने हरीश से बदला लेने की सोची । पर कलाकार का कोमल मन , दिन-महीने धीरे धीरे बीतने लगे और हरीश से बदला लेने की बात भी नवीन के जेहन से धूमिल होने लगी और वह तन्मयता से अपनी संगीत साधना में लग गया ।
पैसा इस दुनिया की सबसे ख़राब वस्तु है । और पिता के बाद उसकी प्रेयसी अमिता ने भी नवीन का साथ छोड़ हरीश से शादी कर ली ।
इत्तेफ़ाक़ से बरसों बाद अमिता और हरीश एक कार्यक्रम में चीफ गेस्ट बन के पहुंचे वहाँ पर नवीन का भी गायन प्रोग्राम था । प्रोग्राम समाप्ति के बाद दोनों से नवीन की मुलाक़ात होती है और नवीन जो पिछली सारी बातें भूल चुका होता है अचानक उनको अपने सामने देख उसके तनबदन में आग लग जाती है ।
तभी एक हादसा होता है । ऑडिटोरियम में आग लग जाती है । और सभी लोग अपनी जान बचा कर भागतें हैं । नवीन भी बाहर भागता है तभी उसके कानों मे अमिता की बचाओ बचाओ की आवाज सुनाई पड़ती है और वह उन दोनों की जान बचाने वापस आ जाता है ।
काफी मशक्कत के बाद वह उनकी जान बचाने में सफल हो जाता है । परन्तु इस बचाव कार्य में उसका चेहरा और दोनों हाथ बुरी तरह से जल जातें हैं फलस्वरूप उसके दोनों हाथों की उंगलिया काटनी पड़ी ।
होश आने पर वह अपने सामने अमिता और हरीश को सामने खड़ा पाता है । जो अंदर ही अंदर पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे । पर नवीन ने तो उनको पहले माफ़ कर दिया था जब उसने इन दोनों की जान बचायी थी ।
जला चेहरा और कटी हुई ऊँगलियों को देखना किसी सदमे से कम नही था नवीन के लिये यह जानते हुए कि उसका कैरियर अब ख़त्म हो चुका है । 

डिस्चार्ज से ठीक एक दिन पहले वह चुपचाप बिना किसी को कुछ बताये चल पड़ता है अंजान सफर पर एक गुमनाम ज़िन्दगी बसर करने को ।

(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०

08/02/2015


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