लघुकथा :- विरासत
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डा० आकाश बचपन से ही संवेदनशील प्रकृति के
है और यह गुण उनको अपने पिता से विरासत में प्राप्त हुआ है तभी तो उसने अपने लोगों
की सेवासुश्रसा करने के लिये शहर के जाने माने हॉस्पिटल की नौकरी को लात मार पैतृक
गाँव में बसने का फैसला किया । घरवालों और यार दोस्तों ने ना जाने कितना समझाया कि
गाँव में रह कर काम करना कितना कठिन है। पर उसने अपनी अंतरआत्मा की आवाज़ को
प्राथमिकता दी ।
अब
उसने अपने पैतृक गाँव में बसने का इरादा किया है ताकि वह गाँव के साधनविहीन लोगों
का मुफ़्त इलाज कर सके ।
कुछ
समय पश्चात.........
परन्तु
गाँव के कुछ लोंगो को उसका वहाँ रहना रास नहीं आ रहा था । उसके क्रांतिकारी
वैचारिक रवैय्ये ने उनकी दुकानों में ताला पड़वा दिया था ।
इस
बार गाँव के दबंगो ने उसके ऊपर बदचलनी का आरोप लागाते हुए पंचायत बैठा दी और जैसा
कि पञ्च परमेश्वर का फैसला होता उसको गाँव से बेदखल कर दिया गया।
अब
उसको देश के सिस्टम से ही घृणा हो गयी है ।
और उसने देश को छोड़ने का फैसला कर लिया ।
मन
ही मन देश की अर्थ , कानून व विधि व्यवस्था को कोसते हुए वह विदेश चला
गया आगे की पढ़ाई करने को ।
अपने
उज्जवल भविष्य के लिये ।
(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
06/02/2015
लखनऊ । उ०प्र०
06/02/2015
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