लघुकथा :- गांधीगिरी
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कुछ लोग बचपन से ही दबंग होते हैं और उनकी
दबंगई और हड़काने से पूरा महकमा ही हिल जाया करता है ऐसे ही थे श्री उमा नाथ मिश्र
जी । और उनके उलट हैं उनके सुपुत्र यानी देवेन्द्र बाबू ,जिन्होंने गलती से चोरी छुपे दो-तीन धार्मिक फिल्मे जागृति और दोस्ती
,मदर इण्डिया क्या देख लीं कि
तब से ही उनको ग़ांधी गिरी का चस्का चढ़ गया था । चाहे घर हो ,मोहल्ला हो या दफ्तर सभी जगह वह सविनय अवज्ञा आंदोलन का ही सहारा लेते। और
बड़े बड़े मसलों को हल करने में उन्हे सफलता भी
प्राप्त हुई ।
चार गुंडों ने सरेआम
उनकी लड़की की इज्जत तार तार कर दी ......और
देवेन्द्र बाबू आज भी थाने पर धरना दिये बैठें हैं इस मुगालते मे कि शायद अब
उन्हें इन्साफ मिलेगा। ना जाने कितने थानेदार आये और चले गये । परन्तु प्रथम
साक्ष्य रिपोर्ट की फाइल है कि अपनी उसी जगह पर है जो टस से मस ही नहीं हो रही।
आज
भी वे गुंडे खुलेआम ना जाने कितनी ही लड़कियों की अस्मत से खेलते फिर रहे हैं ।
और देवेन्द्र
बाबू दरोग़ाओं को गुलाब के फ़ूल भेंट करने में व्यस्त हैं । लगे रहो .....
(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ
। उ०प्र०
18/02/2015
18/02/2015
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