Thursday 5 February 2015

लघुकथा :- मार्गदर्शन (2)
------------------------------------------------

रवि आज भी सुभाष बाबू को याद करता है कि कैसे गलियों में कंचे खेलने वाले लड़के को उन्होंने उठा कर तराशा और उसे हीरा बना दिया ।
बचपन में बाप का साया सिर से उठ जाने के कारण माँ , कोठियों में छोटे मोटे काम करके पैसे कमाती थी । अधिक पैसे ना होने के कारण उसने रवि का नाम स्कूल से कटवा दिया था ।
एक दिन अपनी माँ की तबियत खराब होने के कारण वह उसकी जगह काम करने सुभाष बाबू के घर चला गया ।
सुभाष बाबू संगीत विशारद थे । रवि को बर्तन मांजते समय उन्होंने उसे गुनगुनाते हुए सुना, स्वर उनकी पकड़ में आ चुके थे और उन्हें अपना भविष्य अपने सपने उस लड़के में दिखाई देने लगे ।
कुछ दिनों बाद जब उसकी माँ की तबियत ठीक हो गयी तो वह उसके पास उसके घर गये और रवि की पढ़ाई लिखाई और अन्य खर्चे उठाने की बात की पहले तो उसकी माँ ना नुकुर करती रही पर अन्य खर्चे उठाने की बात को सुन कर वह मान गई और रवि का नाम स्कूल में फिर से लिखवा दिया गया और साथ-साथ ही उसकी संगीत की शिक्षा भी प्रारम्भ हो गई ।
इतने वर्षों बाद रवि अब पहले जैसा वाला रवि नही रह गया था । उसका नाम माया नगरी के सफलतम कलाकारों में शुमार होने लगा है ।
आज भी वह सुभाष बाबू का अहसान मानता है कि अगर बाबू जी ने उस समय उचित मार्गदर्शन नहीं किया होता तो शायद वह आज एक सड़क छाप लड़का होता , ना जाने किसी जेल की सलाखों के पीछे बंद होता या किसी होटल वगैरह में झूठे बर्तन माँजता फिरता ।
नियम से वह आज भी सुबह शाम गली कूँचों के चक्कर काटता है इस उम्मीद से ताकि उसको भी कोई रवि मिल जाये जिसके फलस्वरूप वह उसका मार्गदर्शन कर सके । और अपने गुरु को सच्ची श्रधांजलि व गुरुदक्षिणा अर्पित कर सके ।
(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।

लखनऊ । उ०प्र०
05/02/2015



3 comments: