लघुकथा :- समलैंगिक
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वे दोनों अपने रूखे मिजाज एवं अड़ियल रवैये
के कारण समाज से बहिस्कृत थीं या यूँ कहिये कि उन्होंने स्वयं ही समाज का बहिस्कार
कर दिया था ।
दोनों
ही पुरुष प्रेम में छली गई मानो उनका अस्तित्व एक खिलौने के मानिंद हो । दोनों अलग
अलग सामाजिक परिवेश से आईं थीं ।
अपना घर बार नाते
रिश्तेदारी सब कुछ त्याग कर अरुणिमा व संध्या मॉडलिंग में अपना कैरियर बनाने की
खातिर माया नगरी चली आईं थी ।
दोनों
की मुलाक़ात एक फोटोशूट के दौरान हुई फिर साथ साथ उन्होंने कई कंपनीयों के लिये
मॉडलिंग भी की ।
दोनों
ने एक दूसरे के भीतर अपना अक्स व अपने गुणों को देखा।धीरे धीरे दोनों की मित्रता
प्रगाढ़ होते चली गई और जब भी समय मिलता तो दोनों कभी बांद्रा तो कभी जुहू चौपाटी ,तो कभी खंडाला घूमने निकल पड़ते ।
कुछ
दिनों बाद संध्या अपना फ्लैट छोड़ कर अरुणिमा के घर रहने चली आती हैं । अब दोनों एक
ही छत के नीचे रहते एक ही साथ कंपनियों के लिए मॉडलिंग करते व साथ साथ घूमते फिरते
।
यह
बात उनके साथियों व कंपाउंड में रहने वाले स्त्री व पुरुषों की समझ के परे थी ।
लोग उनके पीछे फुसफुसाते "अरे वे दोनों तो समलैंगिक है ।"
(पंकज
जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
11/02/2015
लखनऊ । उ०प्र०
11/02/2015
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