Sunday 1 February 2015

लघुकथा :- गौ रक्षा
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श्री राम सिंह पैंतीस साल पहले गाँव की जमीन को बेच कर अपने परिवार के साथ शहर आ गए थे । शहर आकर उन्होंने परचून की दुकान खोली । 

राम सिंह को किसी ने कहा कि पड़ोस में एक सिद्धि प्राप्त महात्मा जी का प्रवचन होने वाला और वहाँ तुम उनसे पूछ सकते हो तुम्हारा व्यापार कैसे फले फूले ।

महाराज जी से सत्संग समाप्ति के बाद राम सिंह ने अपना व्यापार वह कैसे बढ़ाये प्रश्न किया फलस्वरूप महात्मा जी ने उत्तर दिया कि यदि तुम गायों की सेवा करोगे तो तुमको अपने व्यापार में अपार सफलता होगी। राम सिंह ने ख़ुशी ख़ुशी दो गायें पाली और इनकी सेवा करने के फलस्वरूप आज उनके पास चार फैक्ट्रियां , घर गाडी नौकर चाकर जितने सुख साधन मिल सकते थे वह उन्हें गौ सेवा के फलस्वरूप प्राप्त हुए । कुछ सालों बाद जब दोनों गाये बूढ़ी हो गयी तो उन्होंने उन्हें अपने घर से निकाल कर सड़कों पर लोंगो की झूठन खाने के लिये मजबूर कर दिया । गायों के सेवा ना करने के कारण धीरे धीरे उन्हें व्यापार में घाटा होने लगा ।
बरसों बाद आज फिर वही सिद्ध पुरुष शहर में वापस आये यह जानने के लिए कि राम सिंह का कारोबार कैसा चल रहा है परंतु उन्हें जब यह ज्ञात हुआ कि राम सिंह ने गायों को बूढ़ा होने पर घर से निकाल दिया तो वे बड़े क्रोधित हुए बड़ी माफ़ी मांगने के उपरांत उन्होंने राम सिंह से कहा आज से तुम गली कूचे में भटकने वाली जिस भी गाय को देखना तो उसको अपने घर ले आना अगर वह घायल हों तो उनका इलाज करवाना। संत की बात मान राम सिंह ने एक बड़ी सी गौशाला बनवायी और उसमें लाचार बेबसी गायों को सहारा देना शुरू किया धीरे धीरे उसकी सारी खोई हुई प्रतिष्ठा लौटने लगी । आज उसके पास करीब डेढ़ सौं गायें हैं । 
(पंकज जोशी) सर्वाधिकार सुरक्षित ।
लखनऊ । उ०प्र०
01/02/2015



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